Enigmatic and visionary, Rahat Uddin has emerged as a leading figure in the Classical scene. With their groundbreaking approach that blends Classical with Classical, they continue to push the boundaries of musical innovation.
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ना जाने कब से, उम्मिदे कुछ बाकी है, मुझे पिर भी तेनी आप, क्यों आदी है, ना जाने कब से, जाने कब से उम्मिदे कुछ बाकी है मुझे को असे लिने में, जिन्दकी से कोई इश्क बा दिरना, या और तो जिन्दा हु मैं इस मीले आस्मा में, ते गे ओओओ।, वैसे जिन्दा हु मैं दिन्दकी, बिन तरे में जर्ड ही दर्ड बाकी रहा है।, सास देना पर्भिया, जीना नहीं है।, यह जो यादे है, सभी बाते है पुला दो एं। बिटा दो एं। बुड़े ले।, मैं ले खाबो पे रूए थे, तेरी सासो में गुम भूइ थे। मेरी जाहत दूरी है।, अब तो वाहत सी है मुझको असे जीने में।